भारतीय कंपनियों पर चाइना के जबरन अधिग्रहण का खतरा, केंद्र सरकार ने सख्त किए विदेशी निवेश के नियम |
कोरोना महामारी के इस संकट में भारतीय कंपनियों के जबरन अधिग्रहण के खतरे को भांपते हुए केंद्र सरकार ने विदेशी निवेश के नियमों को सख्त कर दिया है| चीन भले ही यह कहे कि उसकी नीतियां विस्तारवादी नहीं हैं लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। चीन के कारोबारी भारत के कई कंपनियों के अधिग्रहण की फिराक में हैं। इसे लेकर केंद्र सरकार देश की छोटी बड़ी - बड़ी कंपनियों को चीनी हाथों में जाने से बचाने के लिए विदेशी निवेश FDI

के नियमों को सख्त कर दिया हैं।कोरोना वायरस की वजह से कई बड़ी और छोटी कंपनियों की मार्केट वैल्यू गिर गई है| ऐसे में उनका अधिग्रहण यानी ओपन मार्केट से शेयर खरीद कर मैनेजमेंट कंट्रोल हासिल किया जा सकता है| आपको बता दें कि हाल में चीन के सेंट्रल बैंक, पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने भारत की सबसे बड़ी हाउसिंग फाइनेंस कंपनी - हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड (HDFC) में 1.01 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी है| इसीलिए सरकार ने अब भारत में विदेशी निवेश (FDI) के नियम और सख्त किए है|
सरकार के नए संशोधन के अनुसार, पड़ोसी देशों से भारतीय कंपनियों में एफडीआई निवेश के लिए अब सरकारी अनुमति की आवश्यकता होगी| यह उन सभी देशों पर लागू होगा जो चीन के साथ - भारत के साथ भूमि सीमा साझा करते हैं| आपको बता दें कि इसी तरह के एफडीआई प्रतिबंध पहले पाकिस्तान और बांग्लादेश पर लगाए गए थे |
सरकार ने COVID-19 महामारी के कारण पैदा हुई परिथितियों में भारतीय कंपनयों के जबरन अधिग्रहण पर अंकुश लगाने के लिए FDI पॉलिसी में बदलाव किया है| सरकार की मंजूरी का मतलब है कि जिस सेक्टर में सरकारी रूट के जरिए विदेश से पैसे आने हैं, उस सेक्टर से जुड़े मंत्रालय से इसकी मंजूरी लेनी होती है|
फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (FDI) का मतलब होता है किसी विदेशी कंपनी का भारत की किसी कंपनी में सीधे पैसा लगाना| जैसे वॉलमार्ट ने हाल ही में फ्लिपकार्ट में पैसा लगाया है| तो ये एक सीधा विदेशी निवेश है| इसी निवेश के नियमों में सख्ती की गयी हैं, अब चीन समेत सभी पड़ोसी देशों को भारत में निवेश के लिए सरकार से मंजूरी लेनी होगी| कंपनियों के मैनेजमेंट कंट्रोल पर असर पड़ने वाले विदेशी निवेश के लिए मंजूरी जरूरी है| सरकार की ओर से तय किया जाएगा कि किस सेक्टर में एफडीआई की सीमा कितनी होगी, उसके बाद विदेश की कोई कंपनी सीधे भारत की किसी कंपनी या किसी सेक्टर में पैसे लगा सकती है| भारत में कई ऐसे सेक्टर हैं, जिनमें विदेशी कंपनियां भारत में पैसा नहीं लगा सकती हैं| कोरोना से कंपनियों के वैल्यूएशन में आई गिरावट का फायदा उठाने से रोकना ही इस कदम का असली मकसद है|
आपको बता दें कि भारत से पहले यूरोपीय देश जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन और इटली ने भी एफडीआई पर सख्ती करने का फैसला लिया है|